केन्द्रीय क्षेत्र (फोकस एरियाज) भारत

 1. न्याय की उपलब्धता
 2. जैव विविधता

 3. बौद्धिक संपदा

 4. सामाजिक आर्थिक पहलू

 5. जल
 6. क्षति

विशिष्ट भारतीय तथ्य-संग्रह

 1. नर्मदा बांध
 2. भोपाल गैस त्रासदी

 3. बेस्ट बेकरी मामला

विधिक-प्रपत्र - आंकड़ा-कोष (डाटाबेस)

1. सामान्य प्रपत्र
2. जल प्रपत्र
3. वन प्रपत्र

 
 
 

वनों से संबंधित - चुनिंदा प्रपत्र

बहुत से कारणों से भारतीय वन, नीति निर्माताओं, नागरिक समाज के साथ साथ औद्योगिक लॉबियों का ध्यान खींच रहे है। औपनिवेशिक काल के वैधानिक और नीति प्रपत्रों के उद्देश्य के तहत, स्वतंत्रता-पूर्व समय से भारतीय वन समर्पित नौकरशाही संवर्ग द्वारा शासित किए जाते रहे हैं। सुरक्षा और संरक्षण के लिए केंद्रिय अधिनियमों के तहत जहां कुछ अधिसूचित वर्ग संघ के शासन के अधीन हैं, वहीं कुछ अविनियमित वन भूमि / क्षेत्र (विभिन्न वर्गों में विभाजित जैसे बसरा जगंल, ग्राम्य जंगल) राज्य के राजस्व विभाग के तत्वाधान में है क्योंकि संविधान के तहत भूमि राज्य-सूची का विषय है।

हाल ही तक, 1995 से सर्वोच्च न्यायालय की दो समर्पित न्यायपीठों का एक मात्र उद्देश्य वनों का संरक्षण था। समय के साथ भूमि पर देशज समुदायों के परम्परागत दावों के संदर्भ में विवाद जो वन (संघ और राज्यों के विभिन्न विधानों के तहत) और संरक्षणकर्ताओं के रुप में वर्गीकृत हो सकता है, के अनुसार वनों के संरक्षण के लिए वनो के कुछ वर्गो को पूर्णतः अनुलंघनीय बनाने की आवश्यकता है और मानवीय व्यवहर से स्वतंत्र होने चाहिए चाहे जो भी परिणाम निकले। देशज समुदायों के परम्परागत दावों की विधिक मान्यता की आवश्यकता के कारण 2006 में वन अधिकार अधिनियम पारित किया गया।

राज्य और केंद्र के विधानों और कार्यकारिणी विधानों के अन्य विभिन्न रुप (नियम, विनियम, संयुक्त वन प्रबंधन प्रस्तावों) कानून/नीति प्रपत्रों के सांचे का निर्माण करते है जो भारत मे वनों को प्रभावित करते है।

 

केंद्रीय अधिनियम और अन्य प्रपत्र

संयुक्त वन प्रबंधन

राज्य अधिनियम

बिहार
कर्नाटक
केरल
मणिपुर
उड़ीसा

 

तमिलनाडू
पश्चिम बंगाल
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